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इस पार प्रिये : Is Paar Priye _ Dr. Harivansh Rai Bachchan

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  इस पार उस पार इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा ये शाखाएँ कुछ शोक भुला देतीं मन का,        कल मुर्झाने वाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,        बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!        इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! जग में रस की नदियाँ बहती, रसना दो बूंदें पाती है, जीवन की झिलमिल-सी झाँकी नयनों के आगे आती है,        स्वरतालमयी वीणा बजती, मिलती है बस झंकार मुझे,        मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है! ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये, ये साधन भी छिन जाएँगे, तब मानव की चेतनता का आधार न जाने क्या होगा!        इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! प्याला है पर पी पाएँगे, है ज्ञात नहीं इतना हमको, इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थ बना कितना हमको,        कहने वाले, पर कहते है, हम कर्मों में स्वाधीन सदा,        करने वालों की परवशता है ज्ञात किसे, जितनी हमको? क

आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी

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 आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी शकील बदायुनी आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी  संग-दिल आ भी जा अब ख़ुदा के लिए लब पे है तेरा नाम आख़िरी आख़िरी  कुछ तो आसान होगा अदम का सफ़र उन से कहना तुम्हें ढूँढती है नज़र  नामा-बर तू ख़ुदारा न अब देर कर दे दे उन को पयाम आख़िरी आख़िरी  तौबा करता हूँ कल से पियूँगा नहीं मय-कशी के सहारे जियूँगा नहीं  मेरी तौबा से पहले मगर साक़िया सिर्फ़ दे एक जाम आख़िरी आख़िरी  मुझ को यारों ने नहला के कफ़ना दिया दो घड़ी भी न बीती कि दफ़ना दिया  कौन करता है ग़म टूटते ही ये दम कर दिया इंतिज़ाम आख़िरी आख़िरी  जीते-जी क़द्र मेरी किसी ने न की ज़िंदगी भी मिरी बेवफ़ा हो गई  दुनिया वालो मुबारक ये दुनिया तुम्हें कर चले हम सलाम आख़िरी आख़िरी  https://www.youtube.com/watch?v=kdKOjXuX_qE